Monday, February 25, 2008

मेरी जिंदगी में क्यूँ आए

साहिल बिना कोई कश्ती हो जैसे
यूँ ही अकारण जीए जा रहा था
तभी मेरी जिंदगी में आप आए ...
यूँ ही बदरंग और बेनूर
जिंदगी थी मेरी
तभी मेरी जिंदगी में आप आए ...
मैं दीप था कोई बुझता हुआ
था जिसमे नहीं कोई सनेह
तभी मेरी जिंदगी मे आप आए ...
था कारवाँ कोई मेरा जीवन
थी नहीं कोई जिसकी मन्जिल
तभी मेरी जिंदगी मे आप आए ...
इक हमराही की तलाश-सी है
यूँ लगा जब कभी दिल को मेरे
तभी मेरी जिंदगी मे आप आए ...
मेरी जिंदगी में आकर
मुझे हमराही बनाया
फ़िर अचानक और अकारण ही
मेरी जिंदगी से चले गए ...
अब मेरा दिल बस ये सोचे
मैं जीए जा रहा था यूँ ही
जब अपने हाल पे किसी तरह
तो फिर मेरी जिंदगी मे आप क्यूँ आए ..........

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