दिल मेरा जिसके पास था
मैं जिसका खास-म-खास था
जाने क्यूँ लगता है प्रियतम
वो तुम न थे कोई और था ...
हँसी अपने होठों की मुझे दे
जो मेरी आहों को लेता था
जाने क्यूँ लगता है प्रियतम
वो तुम न थे कोई और था ...
मैं जिसके बहुत करीब था
जो मुझको बहुत अजीज़ था
जाने क्यूँ लगता है प्रियतम
वो तुम न थे कोई और था ...
जो दिल में मेरे रहता था
मुझे दिल का टुकड़ा कहता था
जाने क्यूँ लगता है प्रियतम
वो तुम न थे कोई और था ...
जब याद में तेरी तड़पे थे
दीदार को तेरी तरसे थे
वो मौसम प्रियसी बहार न था
वो मौसम कोई और था ..........
Monday, February 25, 2008
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