जब दूर किसी दरख्त पे
दिखी मुझे कोई धूमिल छवि
मुझसे कहा मेरे दिल ने तभी
क्यूँ ना बन जाऊं मैं भी कवि...
मेरे दिल के किसी कोने मे
टकराई आकर एक ध्वनि
जिसके मीठे झंकारों से
आह्लादित हुई दिल की अवनि...
दिल के उन्मेषों नें मुझसे
कई बार कहा ये आकर के
वो कौन है जो दिखती भी नहीं
जरा देख तो ले तू जाकर के...
बस फ़िर क्या था, मैं कर में
अपने आतुर इस दिल को लिए
जा पहुँचा पन्नों मे कल के
उस प्रियसी की-सी छवि के लिए...
जब नींद से जागा जाके वहाँ
याद आया वो स्वप्न की सरिता है
प्यार आया मुझे जिसकी छवि पे
वो मेरी अनूठी कविता है .................
1 comment:
swapn aur kavita ...mast likha hai aapne...maza aa gaya!!
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