जीवन की एक चाह
क्यूँ न मैं कुछ करूँ**
गिरुं गिरकर सम्भलूं
डगमगाऊं फिर भी चलूँ
क्यूँ न मैं कुछ करूँ**
क्यूँ न मैं उन गावों मे जाऊँ
जहाँ आज भी बच्चे शिक्षा से दूर हैं
क्यूँ न दो टूक ज्ञान का उन्हें भी दूँ
क्यूँ न मैं कुछ करूँ**
क्यूँ न उन लोगों की भीड़ मे जाऊँ
जो आज किसी तरह खाया पर कल क्या खाना है
ये सोच सोच के हैराँ हैं
क्यूँ न उन्हें दो रोटियां खिलाऊँ
क्यूँ न मैं कुछ करूँ**
क्यूँ न उन नेताओं के पास जाऊँ
जो देश की बदहाली पे अट्टहास कर
अपना खजाना भरने की होड़ मे हैं
क्यूँ न उन्हें ज़मीनी सच्चाई से अवगत कराऊँ
क्यूँ न मैं कुछ करूँ**
क्यूँ न मैं भारत माँ की गोद मे जाऊँ
जो अपने ही पूतों के दुष्कर्म से लज्जित है
क्यूँ न उसके आंसू पोछूं
क्यूँ न मैं कुछ करूँ**
जीवन की एक चाह
क्यूँ न मैं कुछ करूँ ********
Tuesday, August 26, 2008
Saturday, July 26, 2008
आसमान की तड़प
ये आसमान अपने गर्भ में कितनी रहस्यमई वेदनाओं को समाहित किए हुए है ।
कितनी आकाशगंगाओं और न जाने कितने अनछुए और अनजाने रहस्यों को
पनाह दिए हुए है ये आसमान ।
यही वो आसमान है जो दिन मे सूरज की हँसी और ओज को आसरा देता है
और रात में जब अँधेरा मात्र रह जाता है उसके साथ तो तारों के ताने भी
सहता है ।यूँ लगता है तारे टिमटिमा नहीं रहे बल्कि उसके मौजूदा हालात
पर किलकारियां भर रहे हों । हाँ वही हालात जबकि ख़ुद उसकी परछाई भी
उसका दामन छोड़ कहीं लुप्त हो जाती है । चाँद अपनी चांदनी की छटा बिखेर
कर उसे थोड़ा सांत्वना देना चाहता है मगर शायद उसे भी ये इल्म नहीं कि
तपते तवे पर अगर दो-चार बूंद पानी कोई बरसा भी दे तो उसकी अगन
कभी बुझी है भला।
आख़िर कहाँ जाए ये आसमान ,किसे सुनाये अपनी व्यथा-कथा ।
आसमान ने कभी सोचा कि इन छोटी उल्काओं से अपने दिल का हाल
बयां करे और उन्हीं से बांटे अपने गम।पर ये क्या अभी तो उसने अपनी
बात पुरी भी न की कि ये उल्काएं क्रोधित हो उठीं और अपने क्रोध की
ज्वाला में भस्मीभूत हो उठीं ।
हम इंसानों के पास दिल होता है ,ये उससे कभी किसी ने कहा था या
यूँ हीं अनायास उसने कहीं सुना था सो उसने सोचा अपनी दुखभरी
दास्तान हमसे बयाँ करे।उसने रात मे अपना दुखड़ा सुनाया,खूब रोया
जमकर आँसू बहाए मगर हम इनसानों नें ,जो उसी की पनाह में जीते
हैं उसकी छत के नीचे आसरा पाते हैं ,उसकी एक न सुनी।यहाँ तक की
कल रात भी आसमान को रोते देखा और यूँ लगा मानो वो कह रहा हो
कि वह रोता ही रहेगा तब तक,जब तक कि कोई उसकी गुहार सुन न
कितनी आकाशगंगाओं और न जाने कितने अनछुए और अनजाने रहस्यों को
पनाह दिए हुए है ये आसमान ।
यही वो आसमान है जो दिन मे सूरज की हँसी और ओज को आसरा देता है
और रात में जब अँधेरा मात्र रह जाता है उसके साथ तो तारों के ताने भी
सहता है ।यूँ लगता है तारे टिमटिमा नहीं रहे बल्कि उसके मौजूदा हालात
पर किलकारियां भर रहे हों । हाँ वही हालात जबकि ख़ुद उसकी परछाई भी
उसका दामन छोड़ कहीं लुप्त हो जाती है । चाँद अपनी चांदनी की छटा बिखेर
कर उसे थोड़ा सांत्वना देना चाहता है मगर शायद उसे भी ये इल्म नहीं कि
तपते तवे पर अगर दो-चार बूंद पानी कोई बरसा भी दे तो उसकी अगन
कभी बुझी है भला।
आख़िर कहाँ जाए ये आसमान ,किसे सुनाये अपनी व्यथा-कथा ।
आसमान ने कभी सोचा कि इन छोटी उल्काओं से अपने दिल का हाल
बयां करे और उन्हीं से बांटे अपने गम।पर ये क्या अभी तो उसने अपनी
बात पुरी भी न की कि ये उल्काएं क्रोधित हो उठीं और अपने क्रोध की
ज्वाला में भस्मीभूत हो उठीं ।
हम इंसानों के पास दिल होता है ,ये उससे कभी किसी ने कहा था या
यूँ हीं अनायास उसने कहीं सुना था सो उसने सोचा अपनी दुखभरी
दास्तान हमसे बयाँ करे।उसने रात मे अपना दुखड़ा सुनाया,खूब रोया
जमकर आँसू बहाए मगर हम इनसानों नें ,जो उसी की पनाह में जीते
हैं उसकी छत के नीचे आसरा पाते हैं ,उसकी एक न सुनी।यहाँ तक की
किसी ने उसके आँसुओं की वजह तक न पूछी।ये क्या वह तो और दुखी
हो बैठा ।कल रात भी आसमान को रोते देखा और यूँ लगा मानो वो कह रहा हो
कि वह रोता ही रहेगा तब तक,जब तक कि कोई उसकी गुहार सुन न
ले और उसके गम का कोई साथी न मिल जाए ................................
Monday, February 25, 2008
मेरी जिंदगी में क्यूँ आए
साहिल बिना कोई कश्ती हो जैसे
यूँ ही अकारण जीए जा रहा था
तभी मेरी जिंदगी में आप आए ...
यूँ ही बदरंग और बेनूर
जिंदगी थी मेरी
तभी मेरी जिंदगी में आप आए ...
मैं दीप था कोई बुझता हुआ
था जिसमे नहीं कोई सनेह
तभी मेरी जिंदगी मे आप आए ...
था कारवाँ कोई मेरा जीवन
थी नहीं कोई जिसकी मन्जिल
तभी मेरी जिंदगी मे आप आए ...
इक हमराही की तलाश-सी है
यूँ लगा जब कभी दिल को मेरे
तभी मेरी जिंदगी मे आप आए ...
मेरी जिंदगी में आकर
मुझे हमराही बनाया
फ़िर अचानक और अकारण ही
मेरी जिंदगी से चले गए ...
अब मेरा दिल बस ये सोचे
मैं जीए जा रहा था यूँ ही
जब अपने हाल पे किसी तरह
तो फिर मेरी जिंदगी मे आप क्यूँ आए ..........
यूँ ही अकारण जीए जा रहा था
तभी मेरी जिंदगी में आप आए ...
यूँ ही बदरंग और बेनूर
जिंदगी थी मेरी
तभी मेरी जिंदगी में आप आए ...
मैं दीप था कोई बुझता हुआ
था जिसमे नहीं कोई सनेह
तभी मेरी जिंदगी मे आप आए ...
था कारवाँ कोई मेरा जीवन
थी नहीं कोई जिसकी मन्जिल
तभी मेरी जिंदगी मे आप आए ...
इक हमराही की तलाश-सी है
यूँ लगा जब कभी दिल को मेरे
तभी मेरी जिंदगी मे आप आए ...
मेरी जिंदगी में आकर
मुझे हमराही बनाया
फ़िर अचानक और अकारण ही
मेरी जिंदगी से चले गए ...
अब मेरा दिल बस ये सोचे
मैं जीए जा रहा था यूँ ही
जब अपने हाल पे किसी तरह
तो फिर मेरी जिंदगी मे आप क्यूँ आए ..........
कोई और था ###(***मेरी पहली कविता***)###
दिल मेरा जिसके पास था
मैं जिसका खास-म-खास था
जाने क्यूँ लगता है प्रियतम
वो तुम न थे कोई और था ...
हँसी अपने होठों की मुझे दे
जो मेरी आहों को लेता था
जाने क्यूँ लगता है प्रियतम
वो तुम न थे कोई और था ...
मैं जिसके बहुत करीब था
जो मुझको बहुत अजीज़ था
जाने क्यूँ लगता है प्रियतम
वो तुम न थे कोई और था ...
जो दिल में मेरे रहता था
मुझे दिल का टुकड़ा कहता था
जाने क्यूँ लगता है प्रियतम
वो तुम न थे कोई और था ...
जब याद में तेरी तड़पे थे
दीदार को तेरी तरसे थे
वो मौसम प्रियसी बहार न था
वो मौसम कोई और था ..........
मैं जिसका खास-म-खास था
जाने क्यूँ लगता है प्रियतम
वो तुम न थे कोई और था ...
हँसी अपने होठों की मुझे दे
जो मेरी आहों को लेता था
जाने क्यूँ लगता है प्रियतम
वो तुम न थे कोई और था ...
मैं जिसके बहुत करीब था
जो मुझको बहुत अजीज़ था
जाने क्यूँ लगता है प्रियतम
वो तुम न थे कोई और था ...
जो दिल में मेरे रहता था
मुझे दिल का टुकड़ा कहता था
जाने क्यूँ लगता है प्रियतम
वो तुम न थे कोई और था ...
जब याद में तेरी तड़पे थे
दीदार को तेरी तरसे थे
वो मौसम प्रियसी बहार न था
वो मौसम कोई और था ..........
मन की जीत
जब सोचता हूँ कई बार बैठा
संग अपनी तनहाई के
दिखता है इक धुँधला-सा चेहरा
दिल की अनन्त गहराई में ...
क्या यह तुम्हारा ही साया है
जो तनहाई को भी बेवफा बना जाता है
अकसर यही सवाल
मेरा मन मुझसे किया जाता है ...
नहीं -नहीं यह कैसे हो सकता है
यह तन्हाई तो तुम्हारी दी हुई नेमत है
तो कोई रोग ख़ुद उस रोग की
दवा कैसे बन सकता है ...
उर की धरा पर
कई बार तेरा ख़याल पनपा , थोड़ा बढ़ा
पर मनसिज ज्वार के थपेडों नें
हमेशा उसे घायल किया ...
कई बार तो मन को मारा है
मगर कब तक यह जुर्म करूँ
कब तक छीनूँ उसकी स्वतंत्रता
आखिर मन की भी तो अपनी परिधि है ...
और हाँ इस बार मैंने
मन की बाहें थामी , उसकी हामी भरी
अब मेरा मन खुश रहता है, गुमा करता है
क्यूं न हो, उसे उसका बिछड़ा साथी जो मिल गया है ..........
संग अपनी तनहाई के
दिखता है इक धुँधला-सा चेहरा
दिल की अनन्त गहराई में ...
क्या यह तुम्हारा ही साया है
जो तनहाई को भी बेवफा बना जाता है
अकसर यही सवाल
मेरा मन मुझसे किया जाता है ...
नहीं -नहीं यह कैसे हो सकता है
यह तन्हाई तो तुम्हारी दी हुई नेमत है
तो कोई रोग ख़ुद उस रोग की
दवा कैसे बन सकता है ...
उर की धरा पर
कई बार तेरा ख़याल पनपा , थोड़ा बढ़ा
पर मनसिज ज्वार के थपेडों नें
हमेशा उसे घायल किया ...
कई बार तो मन को मारा है
मगर कब तक यह जुर्म करूँ
कब तक छीनूँ उसकी स्वतंत्रता
आखिर मन की भी तो अपनी परिधि है ...
और हाँ इस बार मैंने
मन की बाहें थामी , उसकी हामी भरी
अब मेरा मन खुश रहता है, गुमा करता है
क्यूं न हो, उसे उसका बिछड़ा साथी जो मिल गया है ..........
मैं आया
जब लगे आता
कोई दिल के करीब
समझो मैं आया ...
जब लगे बतियानें
तन्हाई तुमसे
समझो मैं आया ...
जब छाये बदली
और नयन से टपकाए नीर
समझो मैं आया ...
जब थामे कोई
दामन तुम्हारा
आके अतीत के पन्नों से
समझो मैं आया ...
यूँ तो मिलते हैं क्षितिज पर
धरती और आकाश
जब लगें मिलते वहाँ दो दिल
समझो मैं आया ...
जब लगे आता
कोई दिल के करीब
समझो मैं आया ..........
कोई दिल के करीब
समझो मैं आया ...
जब लगे बतियानें
तन्हाई तुमसे
समझो मैं आया ...
जब छाये बदली
और नयन से टपकाए नीर
समझो मैं आया ...
जब थामे कोई
दामन तुम्हारा
आके अतीत के पन्नों से
समझो मैं आया ...
यूँ तो मिलते हैं क्षितिज पर
धरती और आकाश
जब लगें मिलते वहाँ दो दिल
समझो मैं आया ...
जब लगे आता
कोई दिल के करीब
समझो मैं आया ..........
वो पगली याद आए
जब सावन के झोंके
छुएं मन के तार को
वो पगली लड़की याद आए ...
पपीहा जब बोले
पीहू -पीहू
वो पगली लड़की याद आए ...
होके बेसुध
जब पवन मचाये शोर
वो पगली लड़की याद आए ...
जब याद भी निभा जाए
बेवफाई
वो पगली लड़की याद आए ...
ये आलम है अरसों पहले का
अब करे कोई बेवफाई किसी से
वो पगली लड़की याद आए ..........
छुएं मन के तार को
वो पगली लड़की याद आए ...
पपीहा जब बोले
पीहू -पीहू
वो पगली लड़की याद आए ...
होके बेसुध
जब पवन मचाये शोर
वो पगली लड़की याद आए ...
जब याद भी निभा जाए
बेवफाई
वो पगली लड़की याद आए ...
ये आलम है अरसों पहले का
अब करे कोई बेवफाई किसी से
वो पगली लड़की याद आए ..........
Saturday, February 16, 2008
विरह की वेदना
जब याद किया दिल ने उनको
सोचा न कभी इन बातों को
यादों की है क्या मर्यादा
हैं यादों की क्या सीमायें...
चाहूँ उनकी यादें आ कर
चूमें मन के अधरों को
संग उनके जिससे उड़ता था
वो पर मेरे आ जायें...
दूर चमन में उड़ जाने को
जब रहते थे आतुर संग मेरे
मादक अतीत के वो पलछिन
फ़िर पास मेरे आ जायें...
मीठे बोल संगम के दो
वो गाते थे जो संग मेरे
दिल चाहे उन प्रिय बोलों को
फ़िर संग मेरे वो गायें...
विरहा की आग के बारे में
औरों से सुनकर हँसते थे
ख़ुद आज अन्तर मेरा चाहे
वो दूर न मुझसे जायें ...............
Friday, February 15, 2008
स्वप्न और कविता
जब दूर किसी दरख्त पे
दिखी मुझे कोई धूमिल छवि
मुझसे कहा मेरे दिल ने तभी
क्यूँ ना बन जाऊं मैं भी कवि...
मेरे दिल के किसी कोने मे
टकराई आकर एक ध्वनि
जिसके मीठे झंकारों से
आह्लादित हुई दिल की अवनि...
दिल के उन्मेषों नें मुझसे
कई बार कहा ये आकर के
वो कौन है जो दिखती भी नहीं
जरा देख तो ले तू जाकर के...
बस फ़िर क्या था, मैं कर में
अपने आतुर इस दिल को लिए
जा पहुँचा पन्नों मे कल के
उस प्रियसी की-सी छवि के लिए...
जब नींद से जागा जाके वहाँ
याद आया वो स्वप्न की सरिता है
प्यार आया मुझे जिसकी छवि पे
वो मेरी अनूठी कविता है .................
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